सुप्रीम कोर्ट ने वकील प्रशांत भूषण को वर्तमान चीफ जस्टिस और चार पूर्व चीफ जस्टिस के खिलाफ किए गए ट्वीट को कोर्ट की गंभीर अवमानना करार दिया है. जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता ने इस मामले पर सजा सुनाने के लिए 20 अगस्त को दलीलें सुनने का आदेश दिया.
अवमानना के मामले में 6 महीने तक की कैद की सजा हो सकती है. पिछली 5 अगस्त को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. प्रशांत भूषण की ओर से वरिष्ठ वकील दुष्यंत ने कहा था कि उनके ट्वीट से स्वस्थ आलोचना की गई है और उनकी नीयत कोर्ट का मान गिराना नहीं था. दवे ने कहा था कि प्रशांत भूषण ने जो भी ट्वीट किया है, उसे एक सुझाव की तरह लिया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि यह कोर्ट के प्रति उनका प्यार है और इसमें कुछ भी व्यक्तिगत नहीं है. उन्होंने कहा था कि संविधान में शक्तियों के विभाजन की बात कही गई है जिसके तहत कोई नागरिक सवाल पूछ सकता है. दवे ने कहा था कि इस मामले में इतना संवेदनशील होने की जरूरत नहीं है क्योंकि ये मसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ है.
दवे ने कहा था कि शिकायतकर्ता वकील माहेक माहेश्वरी की शिकायत दोषपूर्ण थी. उन्होंने कंटेप्ट ऑफ कोर्ट एक्ट की धारा 15 और रूल 3(सी) का हवाला देते हुए कहा था कि इस याचिका को दाखिल करने से पहले अटार्नी जनरल की अनुमति का कोई पत्र नहीं लगाया गया है. इस याचिका को स्वीकार करते समय कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल ने गलती की और वही गलती न्यायिक स्तर पर भी हुई.
हिन्दुस्थान समाचार/संजय