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चीन को सबक सिखाने के लिए राफेल ने शुरू किया हिमाचल की पहाड़ियों में युद्धाभ्यास

फ्रांस से हाल ही में मिले राफेल फाइटर जेट्स ने भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में उड़ान भरने का अभ्यास करना शुरू कर दिया है. इससे भारतीय वायुसेना के पायलटों की रात में पहाड़ी इलाकों में राफेल उड़ाने की ट्रेनिंग हो रही है. वायुसेना के पायलट राफेल के साथ यह अभ्यास रात के समय हिमाचल की […]

चीन को सबक सिखाने के लिए राफेल ने शुरू किया हिमाचल की पहाड़ियों में युद्धाभ्यास
| Edited By: | Updated on: Aug 10, 2020 | 5:06 PM
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फ्रांस से हाल ही में मिले राफेल फाइटर जेट्स ने भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में उड़ान भरने का अभ्यास करना शुरू कर दिया है. इससे भारतीय वायुसेना के पायलटों की रात में पहाड़ी इलाकों में राफेल उड़ाने की ट्रेनिंग हो रही है. वायुसेना के पायलट राफेल के साथ यह अभ्यास रात के समय हिमाचल की पहाड़ियों में कर रहे हैं.

करीब 1700 किलोमीटर के घेरे में अटैक करने की क्षमता रखने वाले राफेल अपने ​सर्कल में कहीं भी मार कर सकते हैं. इस सर्कल में पूर्वी लद्दाख, चीन के अवैध कब्ज़े वाला अक्साई चिन, तिब्बत, पाकिस्तान और पीओके है. भारत सरकार ने फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट एविएशन से 36 राफेल फाइटर जेट खरीदने का अनुबंध किया है.

लम्बे इन्तजार के बाद फ्रांस से पांच राफेल विमान 29 जुलाई को अंबाला एयरबेस पहुंचे थे. आम तौर पर किसी भी नए लड़ाकू विमानों को आपूर्ति होने के तुरंत बाद मोर्चे पर तैनात नहीं किया जाता है, क्योंकि उनका परीक्षण करने और रणनीति विकसित करने में समय लगता है. लेकिन चीन के साथ चल रही तनातनी के बीच राफेल को जल्द से जल्द तैनात करने की योजना है.

इसी के मद्देनजर पहली खेप में मिले 5 राफेल लड़ाकू विमानों ने भारत आने के 10 दिन बाद ही पहाड़ी क्षेत्रों में उड़ान भरने का अभ्यास करना शुरू कर दिया है. चूंकि इन राफेल लड़ाकू विमानों को उड़ाने के लिए भारतीय वायुसेना के पायलेट्स को फ्रांस में ट्रेनिंग दी गई है, इसलिए वे पहाड़ी क्षेत्र में किसी भी संभावित युद्ध की तैयारी के लिहाज से हिमाचल प्रदेश की पहाड़ियों में राफेल जेट के साथ ट्रेनिंग कर रहे हैं. ताकि जरूरत पड़ने पर एलएसी पर किसी भी कार्रवाई के लिए तैयार रहे सकें.

वायुसेना के सूत्रों का कहना है कि दरअसल चीन ने अपने कब्जे वाले अक्साई चिन में रडार लगा रखे हैं, जिनकी फ्रीक्वेंसी से दूर रखने के मकसद से राफेल फाइटर जेट्स को अभी एलएसी की बजाय हिमाचल के पहाड़ी इलाके में अभ्यास कराया जा रहा है. हालांकि ​राफेल में जैमर लगे हुए हैं जो दुश्मन के रडार को जाम करने की क्षमता रखते हैं. ​

राफेल में एक टारगेट कॉर्डिनेटर डिवाइस लगा होता है जो राफेल को चील की नजर देता है. दुश्मन के इलाके में जाने से पहले ही टारगेट इसकी नजर में होते हैं. यही वजह है कि बॉर्डर क्रॉस करने से पहले ही पायलट टारगेट को हमले के लिए लॉक कर सकता है. ​राफेल लद्दाख जैसे दुर्गम इलाके में भी बेहद फायदेमंद है क्योंकि इसे पहाड़ में लड़ने के लिए डिजाइन किया गया है और तेजी से रास्ते बदल सकता है.

पलक झपकते ही ये फाइटर विमान ऊंचाई तक पहुंच सकता है और इतनी ही तेजी से गोते भी लगा सकता है. ​राफेल के अटैक का दायरा करीब 1700 किलोमीटर के घेरे में होता है. भारतीय वायुसेना की ‘गोल्डन ऐरोज’ 17 स्क्वाड्रन अंबाला में ही है जहां से लद्दाख की दूरी करीब 430 किलोमीटर है लेकिन सुपरसॉनिक विमान के लिए यह बहुत कम दूरी है.

राफेल रनवे पर शॉर्ट टेकऑफ कर सकता है, इसलिए इसे रनवे पर दौड़ने की बहुत ज़्यादा जरूरत नहीं होती है. एक बार आसमान में पहुंचने के बाद इस पर नजर रखना मुश्किल होता है, इसीलिए ये दुश्मन के राडार को पलक झपकते ही चकमा दे सकता है. यही वजह है कि ये लद्दाख के पहाड़ों में लड़ने के लिए ये बेहद कारगर है.

राफेल हैमर मिसाइल, स्क्लैप मिसाइल, माइका और मेट्योर मिसाइल से लैस है. स्क्लैप मिसाइल और हैमर मिसाइल गाइडेड मिसाइल हैं जो हवा से जमीन पर हमला करती हैं. स्क्लैप मिसाइल 500 किलोमीटर तक मार कर सकती है तो हैमर मिसाइल 60 से 70 किलोमीटर तक दुश्मन को निशाना बना सकती है. ​

मेट्योर और माइका मिसाइलों की स्पीड करीब 5000 किलोमीटर प्रतिघंटा है और ये 80 से 150 किलोमीटर तक हवा से हवा में मार कर सकती हैं. मेटयॉर मिसाइल से विज़ुअल रेंज के बाहर होने पर भी दुश्मन के लड़ाकू विमान को गिराया जा सकता है. इसके साथ ही राफेल जमीन पर अचानक हमला करने की भी ताकत रखता है.

​हिन्दुस्थान समाचार/सुनीत